काठिन्यं गिरिषु सदा मृदुता सलिले ध्रुवा प्रभा सूर्ये।

काठिन्यं गिरिषु सदा मृदुता सलिले ध्रुवा प्रभा सूर्ये।
वैरमसज्जनहृदये सज्जनहृदये पुनः क्षान्तिः॥

महासुभाषितसङ्ग्रह:

काठिन्य hardness, cruelty प्रथमैकवचनान्त:(न)
→ काठिन्यम्

गिरि mountain सप्तमीबहुवचनान्त:(पु)
→ गिरिषु

सदा always अव्ययम्

मृदुता softness, mildness प्रथमैकवचनान्त:(स्त्री)
→ मृदुता

सलिल water सप्तम्यैवचनान्त:(न)
→ सलिले

ध्रुव constant, eternal प्रथमैकवचनान्त:(स्त्री)
→ ध्रुवा

प्रभा brightness, lustre प्रथमैकवचनान्त:(स्त्री)
→ प्रभा

सूर्य Sun सप्तम्यैवचनान्त:(पु)
→ सूर्ये

वैर enmity प्रथमैकवचनान्त:(न)
→ वैरम्

असज्जनहृदय mind of a wicked person सप्तम्यैकवचनान्त:(न)
→ असज्जनहृदये

सज्जनहृदय mind of a noble person सप्तम्यैकवचनान्त:(न)
→ सज्जनहृदये

पुन: again, but, whereas अव्ययम्

क्षान्ति tolerance, patience प्रथमैकवचनान्त:(स्त्री)
→ क्षान्तिः

पर्वतांत कठिणता, पाण्यात मृदुता व सूर्यात शाश्वत प्रखरता असते. असेच दुर्जनाच्या मनात सदैव वैरभाव तर सज्जनाच्या मनात सदैव धैर्य व क्षमा असते.

There is always firmness in mountains, softness in water and eternal brightness in Sun. Similarly, there is always enmity in the mind of a wicked person whereas tolerance and patience in the mind of a noble and righteous person.

पर्वतों में कठिनाई तथा जल में मृदुता और सूर्य में शाश्वत प्रभा होती हैं। इसी प्रकार दुष्ट व्यक्ति के हृदय में सदैव वैर भाव जबकि सज्जन व्यक्ति के हृदय में सदैव धैर्य और क्षमा की भावना विद्यमान रहती हैं।

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